जीएसटी रिफॉर्म पर बरसी कांग्रेस, बोली- ‘गब्बर सिंह टैक्स लगाकर 8 साल तक चूसा जनता का खून’

देहरादून: कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष करन माहरा और मंगलौर विधायक काजी निजामुद्दीन ने केंद्र एवं राज्य सरकार को जीएसटी रिफॉर्म पर घेरा है। विधायक काजी ने कहा कि केंद्र सरकार जीएसटी को इतना हाइप करके लाई थी कि इसके लिए रात को पार्लियामेंट सेशन बुलाना पड़ा था। राष्ट्र को वन नेशन वन टैक्स और दूसरी आजादी की बात कहकर जीएसटी को लाने के लिए बहुत सेलिब्रेट किया गया, लेकिन असल में जनता को परेशान किया गया।
जीएसटी नीति का खामियाजा पूरे देश ने भुगता: मंगलौर विधायक काजी निजामुद्दीन ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी की हमेशा जल्दबाजी में कोई फैसला लेने की आदत रही है। यह उसी का परिणाम रहा कि मोदी सरकार की जीएसटी नीति का खामियाजा पूरे देश को भुगतना पड़ा।
उन्होंने कहा कि राहुल गांधी ने साल 2016 में जीएसटी नीति का मुखर होकर विरोध किया और इसे ‘गब्बर सिंह’ टैक्स बताया था, लेकिन अब तो भारत सरकार और जीएसटी काउंसिल ने भी मान लिया कि यह वाकई ‘गब्बर सिंह’ टैक्स था। इसका मतलब बीते 8 सालों तक केंद्र सरकार लोगों की जेबों पर जीएसटी के माध्यम से डाका डालती रही और उनका खून चुस्ती रही।
उन्होंने कहा कि बिना किसी तैयारी के जीएसटी लाया गया और अनाप-शनाप टैक्स लगाए गए। जीएसटी 1 ने छोटे राज्यों खास तौर पर हिमालयी राज्यों की अर्थव्यवस्था की कमर तोड़ दी। इसी तरह जीएसटी 2 ने छोटे राज्यों की गर्दन ही मरोड़ दी। राज्य की कर स्वायत्तता को पूरी तरह केंद्रीयकृत कर दिया गया। जिसके बाद राज्य सरकारों के पास मदिरा, पेट्रोलियम पदार्थों पर टैक्स लगाने का जरिया और कोई नहीं बचा।
उन्होंने कहा कि उत्तराखंड के परिपेक्ष में यदि बात की जाए तो इन 8 सालों में कई फैक्ट्रियों के बंद होने से अर्थव्यवस्था खराब हुई है। इसके अलावा एमएसएमई के तहत कई लघु और मध्यम उद्योग बंद हुए हैं। ये सब गलत टैक्स नीतियों की वजह से हुआ। ऐसे में सरकार उन्हें राहत देने का काम करें। इधर, जीएसटी लागू होने के बाद उत्तराखंड को भारी बेरोजगारी का भी सामना करना पड़ा है।
गैरसैंण में जीएसटी काउंसिल की बैठक बुलाने की मांग: कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष करन माहरा ने जीएसटी काउंसिल की एक बैठक उत्तराखंड की ग्रीष्मकालीन राजधानी गैरसैंण में आयोजित कराने की मांग उठाई है। उन्होंने कहा कि इस बैठक में नौ हिमालयी राज्यों के प्रतिनिधियों को शामिल किया जाए। ताकि, जीएसटी काउंसिल को यह पता चल सके कि उच्च हिमालयी राज्य किन-किन दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है।